पैक्सों द्वारा PDS संचालन को किया पुनर्बहाल, कोर्ट की फटकार के डर से बैकफुट पर आई नीतीश सरकार
पटना (जागता हिंदुस्तान) कोरोना महामारी को लेकर जारी लॉकडाउन के दौरान गेहूं अधिप्राप्ति के कार्य को सुचारू रूप से संपादित करने को लेकर पैक्स द्वारा PDS (जन वितरण प्रणाली की दुकान) संचालन पर लगाए गए रोक को आखिरकार राज्य सरकार ने वापस ले लिया है। बिहार राज्य पैक्स प्रबंधक संघ ने इस मामले को अपनी बड़ी जीत करार देते हुए सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए हैं।
इस संबंध में पैक्स प्रबंधक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार गुप्ता ने बताया कि सरकार से अनुरोध करने के बावजूद तुगलकी फरमान वापस नहीं लेने के कारण संघ द्वारा पटना उच्च न्यायालय में पैक्सों के PDS बहाल करने हेतु एक याचिका (CWJC-5640/2020) दायर की गई, जिसकी सुनवाई 07.05.2020 को हुई एवं न्यायालय द्वारा सख्त लहजों मे विभाग एवं सरकार को विस्तृत रूप से जवाबी हलफनामा अगली सुनवाई की तिथि 17.07.2020 को देने हेतु आदेशित किया गया जिसके आलोक में सरकार/विभाग द्वारा आत्म समर्पण करते हुए पैक्सों में PDS को पूर्व की भांति संचालन बहाल करने हेतु पत्रांक 3012 दिनांक 13.07.2020 से आदेशित की गई जबकि गेहूँ अधिप्राप्ति का सरकार द्वारा निर्धारित समय-सीमा 15.07.2020 था। अजय गुप्ता ने कहा कि सरकार देर आयी लेकिन दुरूस्त आयी यानी सरकार को अपनी गलती को एहसास हुआ और न्यायालय में फटकार के डर से अधिप्राप्ति समय-सीमा से 03 दिन पूर्व एवं न्यायालय में सुनवाई के 5 दिन पूर्व ही आदेश दे दिया गया। अजय गुप्ता ने कहा कि इस मामले में सरकार के पास कोई उचित जवाब है ही नहीं लिहाजा कोर्ट की फटकार के डर से बैकफुट पर आते हुए आनन-फानन में ही आदेश निर्गत किया गया है।
इस मामले को लेकर पैक्स प्रबंधक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अजय गुप्ता ने बताया कि दरअसल सरकार के तुगलकी फरमान के कारण लगभग 4000 पैक्सों के PDS को गेहूँ अधिप्राप्ति प्राथमिकता के आधार पर करने के बहाने खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त आदेश पत्रांक 1658 दिनांक 19.04.2020 के तहत पैक्सों मे संचालित PDS को निलंबित कर दिया गया जबकि दशकों से पैक्सों मे धान/गेहूँ अधिप्राप्ति एवं PDS संचालन एक साथ होता आ रहा है तो 2020 मे गेहूँ अधिप्राप्ति और PDS एक साथ कैसे नही हो सकता है था ? यह तुगलकी फरमान बिहार सहकारिता अधिनियम 1935 (यथा संशोधित वर्ष 2008) के विरूद्ध है। चूंकी समिति को उक्त अधिनियम में यह स्वायत्ता है कि समिति कोई भी व्यवसाय अधिक से अधिक कर सकती है जिसमें सरकार की हस्तक्षेप वर्जित है।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सहकारिता मंत्री राणा रणधीर एवं खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री मदन सहनी से संघ द्वारा लगातार तुगलकी फरमान आदेश को वापस लेने एवं पैक्सों मे PDS पुन: बहाल करने हेतु अनुरोध किया जाने के बावजूद सरकार द्वारा पैक्सों के PDS को बहाल नही किया गया। अंतत: संघ द्वारा बाध्य होकर गेहूँ अधिप्राप्ति का बहिष्कार किया गया जो पूर्णत: सफल रहा। इसका प्रमाण है कि सरकार द्वारा गेहूँ अधिप्राप्ति का लक्ष्य 2 लाख मिट्रिक टन से बढ़ाकर 7 लाख मिट्रिक टन किया गया जबकि लक्ष्य के अनुरूप महज 5 हजार क्विंटल ही गेहूँ अधिप्राप्ति हो सकी वह भी विभागीय पदाधिकारियों द्वारा सरकार को खुश करने के बहाने कागजों में ही सिमटकर रह गया जबकि इस जुमलेबाज सरकार के मंत्री गण अपनी हार मे भी जीत का श्रेय ले रहे थे कि सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य के समकक्ष किसान को व्यापारियों एवं निजी एजेंसियों से मूल्य मिल रहा है जो सहकारिता मंत्री एवं कृषि मंत्री द्वारा ब्यान दिया गया था। यह सरकार के लिए बेहद शर्मनाक है। इस सरकार के मंत्री गण ब्यान बहादुर एवं सुपर सेलर हैं, जो गंजों को भी कंघी बेचते हैं।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि संघ पुन: एक बार मुख्यमंत्री एवं सहकारिता मंत्री से निवेदन करता है कि संघ के 5 सदस्यीय शिष्टमंडल से हुई वार्ता के आलोक में अविलंब अर्थात आचार संहिता लागू होने के पूर्व पैक्स प्रबंधकों हेतु अन्य राज्यों के तर्ज पर सेवा-शर्त लागू किया जाय अन्यथा संघ सेवा-शर्त लागू कराने हेतु भी न्यायालय का दरवाजा खटखटायेगा।
बता दें कि पैक्स प्रबंधकों को सरकारी कर्मी का दर्जा देने की मांग को लेकर बिहार पैक्स प्रबंधक संघ लगातार सरकार से गुहार लगा रहा है। अपनी मांगों को लेकर संघ ने दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भी लिखा है। हालांकि पैक्स प्रबंधक संघ के मुताबिक उन्हें इसका कोई जवाब नहीं मिला है।