विपक्ष के मुद्दों को समाप्त करने में जुटे CM नीतीश, अब लिया ये बड़ा फैसला
पटना (जागता हिंदुस्तान) बिहार विधानसभा चुनाव करीब आने के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक-एक कर उन मुद्दों को ही समाप्त कर रहे हैं, जिसे लेकर विपक्ष उनकी सरकार पर हमलावर है। मंगलवार को बिहार विधानसभा में एनआरसी और एनपीआर को लेकर प्रस्ताव पारित होने के बाद गुरुवार को भी एक बड़ा फैसला लिया गया है। दरअसल बिहार विधानमंडल के बजट सत्र के चौथे दिन विधानसभा में प्रस्ताव पास करते हुए सरकार ने 2021 में जाति आधारित जनगणना कराने का फैसला किया है।
बता दें कि पूर्व में तमाम विपक्षी दल इस तरह की मांग उठाते रहे हैं। वहीं खुद सत्तारुढ़ जदयू भी प्रदेश में जातीय आधार पर जनगणना कराने की वकालत करती रही है। साल 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी जदयू ने प्रदेश में जाति आधारित जनगणना का विषय उठाया था। इसके बाद सीएम नीतीश के सत्ता में आने पर राजद और कुछ अन्य पार्टियों ने इसकी वकालत की थी। चुनावी समय में भी सरकारों पर निशाना साधने के लिए विपक्षी दल इस मुद्दे का पुरजोर इस्तेमाल करते रहे हैं। वहीं जातीय जनगणना कराने के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फैसले को इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के शगूफे के तौर पर देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बिहार की राजनीति में पिछड़ी जातियों का प्रभाव काफी अधिक है, ऐसे में जातिगत जनगणना का फैसले कहीं ना कहीं नीतीश कुमार द्वारा इस वोटबैंक में अपनी पैठ को और प्रभावी बनाने का प्रयास है।
1931 से जाति आधारित जनगणना नहीं
1931 के बाद देश में ऐसी कोई जनगणना नहीं हुई जिसमें जाति संबंधी आंकड़े शामिल किए गए हों। जब वीपी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की, तभी से यह सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर इस आरक्षण सीमा का आधार क्या है। इसी अनिश्चितता को मुद्दा बनाते हुए ओबीसी समुदायों की ओर से भी यह मांग की जाती रही कि जनगणना में जाति संबंधी आंकड़े भी जुटाए जाएं।