येदियुरप्पा चाहते हैं कि प्रवासी श्रमिक लौट कर घर नहीं जाएं, ये बंधुआ बनाने जैसा अपराध है- शिवानंद
पटना (जागता हिंदुस्तान) कर्नाटक से प्रवासी बिहारी मजदूरों को लेकर बिहार आने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन सेवा को येदियुरप्पा सरकार द्वारा रद्द कराए जाने के मामले को लेकर राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व राज्यसभा सांसद शिवानंद तिवारी ने बड़ी बात कही है।
उन्होंने कहा है कि प्रवासी श्रमिकों को बंधुआ नहीं बनाया जा सकता है. किसी की मजबूरी का लाभ उठाकर उसकी मर्जी के खिलाफ काम करने के लिए मजबूर करना उसको बंधुआ बनाने के जैसा कानूनन अपराध है. कर्नाटक की सरकार यही कर रही है. खबर है कि वहां के मुख्यमंत्री ने श्रमिकों के लिए जो विशेष रेलगाड़ी की व्यवस्था की गई थी उसको रद्द करा दिया है. वे चाहते हैं कि प्रवासी श्रमिक लौट कर अपने घर नहीं जाएं. क्योंकि प्रवासी श्रमिकों के बगैर उनके यहां आर्थिक गतिविधि शुरू ही नहीं हो पाएगी. लेकिन प्रवासी अगर अपने घर लौटना चाहते हैं तो उनको वहाँ रुकने के लिए मजबूर करना ना सिर्फ अनैतिक है बल्कि कानूनन अपराध भी है.
शिवानंद तिवारी ने कहा है कि यह विचारणीय है कि प्रवासी अपने घर लौटने के लिए इतना बेचैन क्यों हैं! लौक डाउन की अचानक घोषणा के बाद बड़े-बड़े शहरों से बीवी, छोटे-छोटे बच्चों के साथ सारी गृहस्थी को सर पर उठाए अपने गाँव की ओर जाते बदहवास प्रवासियों को याद कीजिए! आजादी के बाद देश में ऐसा दृश्य इसके पहले कभी देखा नहीं गया था. ऐसा क्यों हुआ? आज भी प्रवासी श्रमिक अपने अपने घरों को लौटने के लिए क्यों इतना बेचैन हैं! इन सवालों का जवाब उन्हीं के मुंह से हम लोगों ने मीडिया के माध्यम से सुना है. अचानक हुई लॉक डाउन की घोषणा से उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. एक ढर्रे पर चलती हुई जिंदगी बिखर गई. रोजगार से बेरोजगार हो गए. मकान मालिकों ने घर से बाहर निकाल दिया. जो लोग अपने काम वाले स्थान पर रहते थे उनको भी वहां से बेदखल कर दिया गया. कई जगह तो उनका मेहनताना तक नहीं मिला.
राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कहा है कि प्रवासी श्रमिकों के लिए कोरोना से भी ज्यादा डरावना यह अनुभव रहा है. कोरोना को उन्होंने नहीं देखा है. लेकिन भूख का तो उनको प्रत्यक्ष अनुभव है. भूख से नहीं मरना चाहते हैं. इसीलिए तो बड़े बड़े शहरों में गए थे. लेकिन शहरों ने अपने व्यवहार से उनके मन में भय पैदा कर दिया है. कोरोना से भी ज्यादा भय.
अब जब आर्थिक गतिविधि शुरू हो रही है तो शहरों को प्रवासियों की महत्ता समझ में आ रही है. इसीलिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा साहब उनको रोकने के लिए रेलगाड़ी तक रद्द करवा दे रहे हैं. लेकिन जबरदस्ती का यह तरीका अनुचित और अवैध है. प्रवासी श्रमिकों को रोकने का सबसे माननीय और बेहतर तरीका है की स्थानीय सरकारें उनका विश्वास अर्जित करें. उनको कम से कम तीन महीने के पारिश्रमिक का अग्रिम भुगतान किया जाए. प्रवासी श्रमिकों के साथ लिखित समझौता किया जाए. समझौते में पहली बात यह होगी कि उनके साथ श्रम कानूनों के अनुसार व्यवहार किया जाएगा. किसी भी संकट में उनको अकेले नहीं छोड़ा जाएगा. और जब भी उनको काम से मुक्त किया जाएगा तो अगले महीने की पारिश्रमिक के साथ उनको छुट्टी दी जाएगी.
इस मामले में भारत सरकार को राज्यों की मदद करनी चाहिए. केंद्र सरकार को अग्रिम भुगतान का आधा बोझ उठाना चाहिए. प्रधानमंत्री को प्रवासी श्रमिकों को अपनी ओर से आश्वस्त करना चाहिए कि जो अव्यवस्था पैदा हुई है वैसी व्यवस्था भविष्य में पैदा नहीं होगी. यही एक माननीय और सभ्य तरीका है, जिसके आधार पर प्रवासी श्रमिकों को घर वापसी से रोका जा सकता है.