Education & Culture

कोई भाषा, किसी भाषा से कमजोर नहीं होती- प्रकाश उदय

पटना (जगत हिंदुस्तान) दुनिया की कोई भी भाषा, दुनिया की किसी भी भाषा से कमजोर नहीं होती है, इच्छाशक्ति होनी चाहिए – ये बातें प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक और श्री सीमेंट की ओर से होने वाली मासिक कार्यक्रम आखर में प्रकाश उदय ने कही.
बीआईए हॉल, पटना में आयोजित इस कार्यक्रम में चर्चित पत्रकार निराला बिदेसिया से बातचीत के दौरान भोजपुरी के प्रख्यात साहित्यकार और बलदेव पी. जी. काॅलेज, बड़ागाँव, वाराणसी में अध्यापक प्रकाश उदय ने बताया कि उनके पिता भी निरन्तर लिखते थे, मैं उनका छात्र रहा हूँ. वो हिंदी के शिक्षक थे. बाकी वो पढ़ाते तो हिंदी थे, बाकी इसे समझाते भोजपुरी में थे. इससे बच्चों को बातें याद रह जाती थी. इसी से मुझे अपनी बात अपनी मातृभाषा में कहने की प्रेरणा आयी और मैं भोजपुरी में लिखने लगा.
इस दौरान उन्होंने कहा कि लोगों में किताबें खरीदकर पढ़ने की आदत नहीं है. अमूमन लेखकगण खुद के पैसों से किताबें प्रकाशित करवाते हैं और उसे लोगों में खुद ही बांटते हैं. भोजपुरी का इतना बड़ा क्षेत्र है उसमें जो गंभीर काम हो रहा है उसपर कम बात होती है, उनकी उपेक्षा की जाती है.  ऐसे में लोग लोकप्रियता के लिए, ना नज़र आने के लिए अश्लीलता की ओर बढ़ जाते हैं. भोजपुरी में काफी अश्लीलता है भी. हमें इसे नहीं देखना-सुनना चाहिए. इससे परे भी बहुत कुछ देखने-सुनने लायक हो रहा है.

दूसरी ओर, भोजपुरिया क्षेत्र के लोगों में भोजपुरी के प्रति उपेक्षा भाव और हिंदी के साथ इसके द्वंद पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि एक भाषा-संस्कृति के रूप में हिंदी आजादी के समय बहुत काम आयी. उस समय ही यह धारणा आयी कि हिंदी को अगर बहुत से लोगों से जोड़ देंगे तो यह राष्ट्रभाषा हो जाएगी. फलस्वरूप लोग हिंदी से जुड़ते गए. हिंदी पूरे देश में मातृभाषा के बाद प्रायः हर जगह दूसरी भाषा है. तब अभी भी लोगों को यह समझाना कठिन है भोजपुरी से हिंदी को कोई खतरा नहीं है. धीरे-धीरे लोगों से उनकी मातृभाषाएँ गायब होने लगीं हैं. इससे हिंदी में भी पहले की तरह वैसी रचनाएं नहीं आ रहीं हैं जैसी कभी प्रेमचन्द, निराला, दिनकर जैसे कवियों की हुआ करती थी. दरअसल हिंदी को भोजपुरी या किसी अन्य मातृभाषा से कोई दिक्कत नहीं है, हिंदी की ऐसी प्रकृति ही नहीं है. समस्या हिंदी के सत्ताधीशों को है इससे.

इस दौरान उनके पहले कविता संग्रह ‘बेटी मरे त मरे कुँआर’ जो 1988 में प्रकाशित हुई थी, इसमें शामिल दहेज केंद्रित कविताओं पर भी चर्चा हुई. निराला ने बताया कि ये कविताएँ समाज का यथार्थ चित्रण करती है. 32 वर्ष पहले लिखी हुई ये कविताएँ अब भी उतनी ही प्रासंगिक हैं. इस दौरान प्रकाश उदय ने इस संग्रह से अपनी कविताएँ भी सुनाई. एक चर्चित कविता का शीर्षक है – बड़ा बड़ा फेरा बा, बड़का झमेला बा….

कार्यक्रम के दौरान प्रकाश उदय की राजकमल प्रकाशन से हालिया प्रकाशित कविता संग्रह ‘अरज-निहोरा’ पर भी चर्चा होती रही. प्रकाश उदय ने इस संग्रह से भी अपनी दो कविताएँ – ” रोपनी के रौंदल देहिया, साँझहि निन्ना लाबय, तनी जगहिया पिया, जनी छोड़ के सूती जइह पिया..” और हती हती फुलबा हेतना शोभे/ बड़का केतना शोभी, फूलगोभी/ देखते मन लोभी, फूलगोभी…”

इस दौरान भोजपुरी में व्याकरण और मानकीकरण सम्बन्धी प्रश्नों पर उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि भोजपुरी में लिखने के लिए कई विकल्प मौजूद हैं, लिखते-लिखते भाषा बनेगी तो मानकीकरण हो ही जाएगी. भोजपुरी में अच्छे शब्दकोश की संभावना अब भी बनी हुई है. व्याकरण के लिए भी ऐसा ही कह सकते हैं. हमलोग मात्र अंग्रेजी व्याकरण को केंद्र में रखकर व्याकरण लिखते रहे हैं. समग्रता में हिंदी, संस्कृत आदि भाषाओं के व्याकरण को भी ध्यान में रखना होगा. अब तक जो काम होता रहा है वो महज एक सीढ़ी हो सकती है. सम्पूर्णता में काफी काम होने अब भी शेष हैं. उन्होंने कहा कि यह देश भाषा के स्तर पर बहुत असंवेदनशील है. बोलने की जगह लोग चुप रहते हैं और चुप रहने की जगह पर चिल्लाते रहते हैं. यहां मातृभाषा का काफी अपमान है.

इस कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक और निदेशक आराधना प्रधान ने किया.
इस कार्यक्रम में ऋषिकेश सुलभ, शिव कुमार मिश्र, यशवंत मिश्रा, पुष्यमित्र, मनीष शांडिल्य, उदीप्त , प्रभात रंजन, जफर इकबाल, पूनम आनंद, श्रीराम तिवारी, पृथ्वीराज सिंह, अमेन्द्रनाथ तिवारी, बालमुकुंद, सुशील कुमार भरद्वाज, शाहनवाज, निखिल कुमार, संतोष कुमार, प्रियदर्शी मातृशरण, शुभम उपाध्याय आदि लोग उपस्थित थे.

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