जयंती विशेष : पिछड़ों, दलितों व गरीबों के उत्थान के लिए गुलाम सरवर ने निकाला सरकारी रास्ता- डॉ. एजाज़ अली
पटना (जागता हिंदुस्तान) पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गुलाम सरवर की जयंती को यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा ने “आत्ममंथन दिवस” के तौर पर मनाया। संगठन के मुताबिक गुलाम सरवर की तकरीर, तहरीर और तहरीक सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ थी, जिसका मुस्लिम मोर्चा पूरी तरह से अनुसरण करता है। दलित मुस्लिम आरक्षण की संवैधानिक माँग इसी विचार का केन्द्रीय बिन्दु है।
इस अवसर पर मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉ. एजाज अली ने कहा कि गुलाम सरवर बुनियादी शिक्षा पर बहुत जोर देते थे। कर्पूरी सरकार में शिक्षा मंत्री की हैसियत से उन्होंने संस्कृत स्कूल एवं मदरसा दोनों को सरकारी अनुदान दिलाने की कानूनी व्यवस्था की जबकि विधानसभा अध्यक्ष रहने के दौरान वक्फ जायदाद का सर्वे कराकर उसका उपयोग पिछड़ों,दलितों एवं गरीबों की शैक्षणिक, आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए सरकारी रास्ता निकाला था। ये दोनों बड़े काम उन्होंने अपनी कुर्सी को दांव पर लगाकर किया था। धार्मिक मुद्दों के बजाए वे समाज के जान, माल और चरित्र की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देते थे।
वहीं, मोर्चा के उपाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता कमाल अशरफ राइन ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लक्ष्य में भी कमजोर तबकों के पिछड़ों, दलितों एवं अल्पसंख्यकों की शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक उत्थान ही रहा है और उसी हिसाब से अब तक अपनी योजना तय की है। पूरे बिहार में तालीमी मरकज़ की स्थापना एक मिसाल है, जिसने शिक्षा को अतिपिछड़े एवं दलित मुसलमानों के दरवाजे पर पहुँचाने का काम किया है। इस आन्दोलन को खेतों एवं खलिहानों तक ले जाने की जरूरत है।
प्रो. शफायत हुसैन ने कहा कि हम जब आजादी के 70 वर्षों पर आत्मचिंतन करते है तो पाते हैं कि धर्म के आधार पर टकराव की सियासत से देश एवं समाज दोनों को नुक्सान पहुंचा है। इस आधार पर टकराव भी सामंतवादी विचारधारा का प्रतीक है। रोटी, कपड़ा और मकान की सियासत ही देश की बड़ी आबादी को मुख्यधारा में ला सकती है। टकराव की सियासत से भले ही कोई नेता शोहरत और राजनीतिक वर्चस्व प्राप्त कर ले लेकिन यह नीति जहाँ एक तरफ टिकाऊ नहीं होती है, वहीं दूसरी तरफ देश और समाज का नुक्सान ही देखा गया है। उन्होंने कहा कि गुलाम सरवर साहब की तकरीर ऐसी होती थी कि मानो कब्र से मुर्दा उठकर बैठ जाए। धार्मिक मजलिसों में भी उनकी तकरीर अति उत्तम हुआ करती थी।
मास्टर जमील अंसारी ने कहा कि 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ और उसके 6 माह बाद धारा-341 पर प्रतिबन्ध लगाकर दलित मुसलमानों को अपने बुनियादी आरक्षण से वंचित कर दिया गया। सच्चर कमिटी की रिपोर्ट इसी प्रतिबन्ध का “व्हाईट पेपर” है, जिसने बड़ी मुस्लिम आबादी को हाशिये पर खड़ा दिखा दिया। गरीबी एवं अशिक्षा के कारण मुस्लिम समाज के बड़े हिस्से को टकराव की सियासत में आसानी से इस्तेमाल कर लिया जाता है।
वरिष्ठ पत्रकार रेहान गनी ने कहा कि शेर-ए-बिहार हाजी गुलाम सरवर ने पत्रकारिता, सियासत और कौमी व सामाजिक मामलों से सम्बन्धित बिहार में जो लाइन खींच दी, उससे बड़ी लाइन आज तक नहीं खींची जा सकी है।
अधिवक्ता अरुण कुमार ने कहा कि गुलाम सरवर साहब ऐसे पिछड़े मुसलमान रहे, जिनके घर पर महामाया सरकार के कैबिनेट का गठन तक हुआ।
पटना विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रो. इसराईल रजा ने कहा कि गुलाम सरवर उसूल पसन्द इंसान थे, उन्होंने कभी भी अपने सिद्धान्तो से समझौता नहीं किया। उन्होंने कहा कि आज जिस तरह का माहौल है, उसमें आज फिर एक गुलाम सरवर की जरूरत है।
पत्रकार इरशादुल हक ने कहा कि तत्काल प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी भी ग़ुलाम सरवर की तहरीर से परेशान रहती थीं और चाहती थीं कि उनकी कलम को खरीद लें, जो नहीं हो सका। इसी कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।
मोर्चा के नेता सलाहुद्दीन ने कहा कि कोरोना के बाद दुनिया में बदलाव आया है। हमारे समाज में भी बदलाव आनी चाहिए देशवासियों को अब महँगाई, माफियागीरी और महरूमियत के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। 70 वर्षों तक देशवासियों को मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुसलमान और हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के मुद्दे पर लड़ाया गया है, जिसका नतीजा है कि महँगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार नियंत्रण से बाहर है। हम लोग इस वक्त दरअसल सिविल वार की कगार पर खड़े हैं।
मोर्चा के सचिव मुश्ताक आजाद ने कहा कि कठिन परिस्थति में भी अतिपिछड़े और दलित अल्पसंख्यकों ने ही पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को वोट देने का काम किया है। बिहार में समाजवादी विचारधारा के वह एकमात्र चेहरा हैं, जो पिछले 15 वर्षों से सत्ता में हैं और इस धर्म को निभाया है। उन्होंने कहा कि शोषित वर्ग के अल्पसंख्यकों की मूल समस्या बुनियादी शिक्षा के साथ रोटी, कपड़ा और मकान ही है, लेकिन गरीबी एवं शिक्षा में कमी के कारण ही धार्मिक आधार पर टकराव की सियासत के ये शिकार हो जाते हैं। तालीमी मरकज एवं हुनर की पालिसी ही इन शोषितों को बिहार में इस जंजाल से बाहर निकालने का काम करेगी।
स्वामी शशिकान्त ने कहा कि देश बदलाव के चौराहे पर आकर खड़ा हो गया है। हम भारतीयों को ये तय करना होगा कि सामतांदी व्यवस्था का ही वर्चस्व बना रहे या बाबा साहेब के समाजवादी व्यवस्था को मजबूती मिले। लीडरशिप में बदलाव सेही ये मुमकिन है। शहीद जगदेव बाबू एवं कर्पूरी जी जैसे नेतृत्व को उभारना होगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लीडरशिप सराहनीय है, उन्हें मजबूत रखने की जरूरत है।
इस अवसर पर निम्नलिखित प्रस्ताव पास किये गये।
- धारा-341 से प्रतिबन्ध हटे और दलित मुस्लिम को अनुसूचित जाति में शामिल
किया जाए। - गुलाम सरवर मेमोरियल हॉल में गुलाम सरवर ” सामाजिक रिसर्च इंस्टीच्यूट” कायम की जाए।
- तालीमी मरकज, हुनर और औजार योजना को खेतों और खलियानों तक ले जाया जाए।
कार्यक्रम में मास्टर मो जमील अख्तर अंसारी, मो. हारुण रशीद, मो. बाबर अली, मो. शमशाद अली, मो. कलीमुल्लाह, मो. शकील, मो. मुख्तार आलम, मो. सन्जर, मो. असगर अली राईन मो. सेराज, मो. शाहनवाज हलीम, मो. परवेज़ आलम, मो. अख्तर हुसैन, मो. जावेद, मो. नवाब, मो. अकबर खान, मो. इदरीस राईन, डॉ. मो. निजाम, आदि भी मौजूद रहे।